क्या है 4 डे वर्क वीक मॉडल, काम के घंटे कम करके कर्मचारियों को बेहतर जीवन देने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया जा रहा है। भारत सहित कई देशों में अब “4 Day Work Week” यानी 4 दिन काम और 3 दिन छुट्टी की व्यवस्था पर विचार किया जा रहा है। इस मॉडल के तहत कर्मचारी सप्ताह में सिर्फ चार दिन ऑफिस आएंगे, लेकिन उनकी उत्पादकता और वेतन पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
लेबर कोड में हो सकता है बड़ा बदलाव
भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित नए लेबर कोड में 4 दिन के कार्य सप्ताह का विकल्प शामिल किया गया है। श्रम मंत्रालय के अनुसार, यदि कोई कर्मचारी चार दिन में ही हफ्ते के कुल 48 घंटे का काम पूरा कर लेता है, तो उसे बाकी तीन दिन की छुट्टी मिल सकती है। हालांकि, इसका मतलब यह भी है कि प्रति दिन कार्य समय बढ़कर 12 घंटे हो सकता है।
किन कंपनियों ने शुरू की यह सुविधा
दुनियाभर में कई कंपनियां पहले ही 4 डे वर्क वीक लागू कर चुकी हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और न्यूजीलैंड की बड़ी IT और कॉर्पोरेट कंपनियों ने इस मॉडल को अपनाया है। भारत में भी कुछ स्टार्टअप्स और निजी फर्मों ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसे शुरू किया है, जहां उन्हें सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं।
क्या होगा कर्मचारियों और कंपनियों पर असर
चार दिन काम और तीन दिन छुट्टी से कर्मचारियों को मानसिक राहत, परिवार के साथ अधिक समय और कार्य जीवन संतुलन का बेहतर अनुभव मिलेगा। इससे वर्क प्रोडक्टिविटी, एंगेजमेंट और नौकरी से संतुष्टि बढ़ेगी। कंपनियों को कम वर्क डेज़ के बावजूद अधिक रिटर्न मिलने की संभावना है।
चुनौतियां भी हैं सामने
हालांकि यह मॉडल सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन हर सेक्टर के लिए यह व्यावहारिक नहीं हो सकता। खासकर मैन्युफैक्चरिंग, हेल्थकेयर, एजुकेशन और सर्विस सेक्टर में इसे लागू करने के लिए विशेष रणनीति और शिफ्ट मैनेजमेंट की आवश्यकता होगी। साथ ही, कर्मचारी वर्कलोड को लेकर चिंतित भी हो सकते हैं यदि प्रतिदिन काम के घंटे अधिक बढ़ा दिए जाएं।
क्या भारत में लागू होगा यह नियम
भारत में 4 डे वर्क वीक को कानूनी रूप से लागू करने के लिए श्रम मंत्रालय और कंपनियों के बीच विचार-विमर्श जारी है। 2025 के अंत तक कुछ सेक्टरों में इसे ट्रायल के तौर पर लागू किया जा सकता है। यदि परिणाम सकारात्मक रहे, तो इसे भविष्य में देशभर में रोलआउट किया जा सकता है।
निष्कर्ष
4 Day Work Week न केवल एक आधुनिक कार्य संस्कृति की ओर इशारा करता है बल्कि कर्मचारियों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है। आने वाले समय में यदि यह मॉडल सफल होता है, तो ऑफिस और कामकाज का स्वरूप पूरी तरह बदल सकता है।
डिस्क्लेमर
यह लेख केवल सामान्य जानकारी और संभावित बदलावों पर आधारित है। सटीक और अद्यतन जानकारी के लिए श्रम मंत्रालय या संबंधित सरकारी पोर्टल पर जाएं।
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